आज अगर आम आदमी परेशां है तो वोह है सरकारी अफसरों की मनमानी से कोई भी आधिकारी पुलिस से लेकर मिनिस्ट्री तक सभी को रिश्वत से ही मतलब है अगर रिश्वत नही तो अपने काम पर सही वक्त पर न आना किसी को अगर सरकारी दफ्तर में काम आ जाता है तो वोह सोचता है की कैसे काम पुरा हो अपना काम करवाने के लिए आम आदमी को कैन दिनों तक पापड़ बेलने पड़ते है हाल है पुलिस आफिसरों का किसी भी केस के आने पर वोह सबसे पहले यह सोचते है की कैसे पैसा कमाया जाए और अगर पैसा कामने में पुलिस अफसर सफल न हो सके तो फिर उन्हें लगातार तंग किया जाता है हा वोह भी तो अपराध करते है लेकिन जो वोह करे वोह कानून और आम आदमी वोह अपराध क्या महात्मा गाँधी ने इसी देश को आजाद कार्य था ? ऐसे ही लोकतंत्र की कल्पना की थी
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