Friday, March 13, 2009

आगामी लोक सभा चुनाव












Friday, March 6, 2009

पत्रकारिता में बढता बाज़ार


आज के सामाजिक परिवेश के साथ में बढता हुआ बाज़ार अब पत्रकारिता में भी साफ़ साफ़ नज़र आने लगा है हिन्दी के समाचार पत्रो को देखे या अंग्रेज़ी के समाचार पत्रों को दोनों में बाज़ार का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है लेकिन के हिन्दी समाचार पत्रों में अंग्रेज़ी के मुकाबले कम ही विज्ञापन मिलेंगे अंग्रेज़ी के अख़बारों में फिल्मों की समीक्षा से लेकर पेज थ्री पार्टी तक सब कुछ चपता है लेकिन साथ ही उसमे किसी उत्पाद की बिक्री को एक संचार बनने की कला भी होती होती अंग्रेज़ी के अख़बारों में बॉलीवुड के साथ साथ हॉलीवुड की प्रमुख खबरे भी छप जाती है हिन्दी के अखबारों की तरह अंग्रेज़ी के अख़बारों ने ख़ुद को केवल भारत तक सीमित नही किया है हिन्दी के अख़बारों में कभी कभार एक आत न्यूज़ छप जाती है जबकि अंग्रेज़ी अख़बारों के सुप्प्लेमेंतारी वाला आखिरी पेज ज़यादातर हॉलीवुड की खबरों से भरा होता है अगर हम दोनों अख़बारों में तुलना करें तो अंग्रेज़ी से ज़यादा हिन्दी के अख़बार की क्वालिटी ख़राब होगी हिन्दी के अख़बारों में चटपटी ख़बरों को बेचा जाता है वही अंग्रेज़ी में चटपटी ख़बरों की संख्या हिन्दी के मुकाबले कम होती है खैर इस तरह की ख़बरों से ख़ुद हिन्दी अख़बारों का लेवल भी घटने लगता है

Thursday, March 5, 2009

अभी भी ज़रूरत है


हमारे देश को आज़ादी दिलाने में स्वतंत्राता आंदोलन की विशेष भूमिका रही।अंग्रेजो के विरूद्ध चले आंदोलन ने 100 साल के शासन को उखाड़ कर फेक दिया।1947 के बाद की स्थिति ने सारे सपनों को तोड़ दिया।स्वतंत्राता के बाद भी कई आंदोलन उठे जिन्होंने भारतीय व्यवस्था को सुधारने का प्रयास किया।1947 के लिए भारत में भाषा जाति क्षेत्राीय सीमाओं से बाहर आकर आंदोलन की प्रक्रिया चली। लेकिन इसके बाद समाज भाषा जाति क्षेत्राीय सीमाओं में ही विभाजित हो गया। आज़ादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन की मांग चली।दक्षिण में मलयालम तमिल और उत्तर में हरियाणा पंजाबी भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग चली।इसके माध्यम से वह आर्थिक व्यवस्था में सुधार और सामाजिक अव्यवस्था को खत्म करना चाहते थे।1960 के दशक में व्यवस्था बिगड़ने लगी।राज्यों में अशंाति उत्पन्न होने लगी।सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार द्वारा कई कार्यक्रम किए गए लेकिन इनका परिणाम नकारात्मक ही रहा।देश में गरीबी भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा था।1960 में कांग्रेस में पूंजीपतियों के वर्चस्व के कारण समाज में गहरा असंतोष उत्पन्न हो रहा था।1960 में नक्सल आंदोलन जंगलो की कटाई तक सीमित था।70 तक मध्य वर्गीय बुद्विजीवियों और गरीब दलित और आदिवासियों को प्रभावित करने लगा। सरकार का एक तानाशाही रूप 1975 के आपातकाल में स्पष्ट दिखाई देने लगा।इस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्रों का आंदोलन उभर कर आया ।इसका यह फायदा हुआ कि चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और मिली जुली सरकार का पहली बार उदय हुआ।इस तरह एक नई राजनीति हमारे सामने आई।1980 में पंजाब में हरि क्रांति के विरोध में आंदोलन उभरा जिसका नेतृत्व अकाली दल ने किया।यह फिर धार्मिक आंदोलन और आतंकवाइ में परिवर्तित हो गया जिसका परिणाम आॅपरेशन ब्लू स्टार और इन्दिरा गांधी की हत्या है। लेकिन बाद में यह भी राजनीति व्यवस्था का ही हिस्सा हो गए।1980 के दशक में कश्मीर में हिंसा प्रारंभ हो गयी थी।1990 के दशक में हिंसा ने विराट रूप ले लिया था और उतर पूर्वी इलाको में भी हिंसक गतिविधियां आरंभ हो गयी थी।जिनका उपाय राजनीति प्रक्रिया द्वारा निकला लेकिन कश्मीर का कोई समाधान नहीं निकल सका। इस बार ही 2008 में ही वहां सबसे ज्यादा मतदान किए गए।शायद लोगों का विश्वास अब भारत की राजनीति पर होने लगा है भाषा दलित और महिला को लेकर भी कई आंदोलन हुए या हो रहे है।इनके कारण कला साहित्य और शिक्षा के क्षेत्रा में इनकी भागीदारी तो बढ़ी लेकिन इतने साल में आज भी उन्हें वास्तविक अधिकार प्रापत नहीं हो सका।डाॅ अम्बेडकर के नेतृत्व में दलित आंदोलन तो किया गया किंतु आज भी उनकी स्थिति में कुछ खास परिवर्तन नहीं आए भाषा को लेकर एक ऐसी मुहिम छिड़ गई है जिसने देश की एकता और अखण्डता पर प्रश्न चिहृन लगा दिया है।क्षेत्राीय या भाषा आंदोलन उभरता तो है लेकिन बाद वह भी राजनीति का हिस्सा बन जाते है।महिला आरक्षण देकर उन्हें हक देने की बात करते है लेकिन समाज में उन्हें आज भी अधिकारों से वंचित रखा जाता है।महात्मा गांधी ने जिन्हें हरिजन और वास्तविक समाज कहा उन्ही को अधिकार प्राप्त नहीं है।इसलिए समाज में एक ऐसे आंदोलन की ज़रूरत है जो समाज से इस भेदभाव को मिटा सके लेकिन कोई हिंसक रूप न ल क्योकि हिंसा कोई समाधान नहीं है।

आगरा का मेला



हमारा देष में सभ्यता और संस्कृति की भरमार है।भारत प्रत्येक राज्य में कोई न कोई संास्कृतिक त्योहार अवष्य होतेे है।भारत में लाखों त्योहार मनाए जाते है।ऐसे ही आगरा भी है जिसे कुछ लोग केवल षाहजहा के ताजमहल के लिए ही आगरा को जानते है ।लेकिन मथुरा और वृंदावन से आगे स्थित आगरा मंदिरोत्सव और धार्मिकोत्सव के लिए भी उतना ही प्रसिद्व है। यहां पर दाउजी का मेला कंस लीला जट देवी मेला ग्वाल बाबला होली मिलाप कैलाष मेला काली का मेला आदि मनाए जाते है। इसके साथ यहां पर एक मेला सबसे अधिक प्रसिद्व है वो है षीतला देवी का मेला।यही मेला राजस्थान में भी चैत्र मास के कृश्ण पक्ष में मार्च और अप्रैल महीने में होता है। यह राजस्थान में जयपुर में लगता है। आगरा में यह मेला असाढ़ मास में लगता है।यह एक धार्मिक मेला है इसमें मुख्य रूप से षीतला माता की पूजा की जाती है। आगरा और मुंबई रोड पर स्थित षीतला माता के मंदिर में यह मेला लगता है। कईं साल पुराना यह मेला यमुना नदी के तटपर स्थित है। यह मेला मुख्य रूप से इसलिए प्रसिद्व है क्योंकि यहां पर लोग अपने बच्चों के बाल उतरवाने आते है।यहां पर लोग पूजा में हल्वा पूरी चढ़ाते है। लेकिन इसके अतिरिक्त इस मेले में पर्यटक दूर दूर से घूमने आते है। यह मेला एक स्थानीय सांस्कृतिक उत्सव है। वहां के स्थानीय लोगो ं की संस्कृति को यह उत्सव अपनी ओर आकर्शित करता है। यहां की कारीगरी कला संगीत भोजन भी पर्यटक को अपनी ओर आकर्शित करते है। इसके कारण लाखों का व्यापार हर साल किया जाता है।इस मेले के कारण ही एक बार लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता से परिचित हो जाते है।

बांग्लादेश से आई महिला की शक्ति



महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई बहुत पुरानी है।पहले केवल अपने परिवार में ही उसका शोषण सालों से होता था। आज अपने जीवन को जीने के लिए भी उसे शोषण को सहना पड़ता है। ऐसी स्थिति हम केवल उन महिलाओं की देखते है जो किसी बड़े क्षेत्रा में काम करती है।लेकिन ऐसी स्थिति उन महिलाओं की भी है जो दूर से यहां काम करने आती है। ऐसी ही कुछ महिलाएं तुकलकाबाद में बंगलादेश से रहनेे आई है। यें सभी कालकाजी से लेकर चितरंजन पार्क तक पूरी मेहनत से सालों से काम कर रही है फिर भी इन्हें आज भी भारतीय समाज में नहीं अपनाया गया । इनके जीवन की कहानी भी निराली है। अपने परिवार को छोड़कर ये यहां पर जीवन यापन कर रही है। इनमे से कुछ से बात करने पर इन्होने अपने जीवन की परेषानियों को बताया। कलकता के नादीया जिले से आई लक्ष्मी ने अपने जीवन की कथा बताई।इन्हें दिल्ली आए ग्यारह साल हो गए है।दिल्ली में आने के बाद इन्होंने अपने पति को छोड़ दिया था। प्रति माह यह तीन से चार हजार कमा लेती है। जिस पर इन्हें अपनी मां बेटी नेत्राहीन बेटे का गुजारा करना पड़ता है। आज की मंहगाई में अपने परिवार को पालना बहुत ही मुष्किल है। यह केवल छठी कक्षा तक पड़ी है इसलिए चाहती है जो इनके साथ हुआ वह अपनी बेटी के साथ न होने दें। इनकी एक इच्छा है अपनी बेटी की षादी की नहीं बल्कि इनकी बेटी पढ़े ताकि वह जीवन में यह सब न करें। हम कितना भी ठुकराए लेकिन यह हमेषा पुरूषवादी समाज रहेगा।ऐसे कईं हादसे इनके साथ भी हुए है। रात कारनेे देर हो जाने या किसी के घर पर काम करने पर इनके साथ दुव्र्यवहार हुआ।इन सब की षिकायत ये कभी किसी से नहीं करती जिसकी वजह है कि वह आदमी इनके और पीछे पड़ जाएगा।इसका उदाहरण देते हुए बताया कि रात को अकेले आते हुए रास्ते में एक गाड़ी खड़ी होती है जिसमें तीन आदमी आने जाने वाली इन महिलाओं के साथ ज़बर्दस्ती करते है।एक आम लड़की के साथ यदि ऐसा हादसा हो तो वह दुबारा उस रास्ते जाने में हिचकिचाए। लेकिन ये निडर होकर वहां काम करती है। कम उम्र में षादी होने के कारण जीवन में बहुत कुछ इन्होंने अपनी हिम्मत से सीखा है।जीवन में हार न मानना और लड़ना तो सीखा लेकिन सामने वाले से अपने अधिकारों की मांग करना नहीं सीख पाए। यह एक परिवार के साथ बाहर जाना चाहती थी ताकि वहां पर ज्यादा कमा कर परिवार का पालन कर सके।इसमें विडंबना देखिए कि उनका वीज़ा इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि यह एक बंगलादेषी है। एक तो महिला और दूसरी बंगलादेषी आखिर क्यों उनके साथ इस तरह का भेदभाव होता है। कुछ लोगों की गलती की सज़ा उन्हें भुगतनी पड़ती है। यह तो केवल एक ही महिला है ऐसी कईं महिलाएं है जो जीवन गुज़ारने के लिए इन समस्याओं का सामना करती है। पांच साल पहले आई विमला और बीना की यही कहानी है। अपने पूरे परिवार छोटे छोटे वच्चों को छोड़कर वह यहां काम कर रही है। उन्हें कुछ मिले या न मिले बस दिल्ली में सुरक्षा तो ज़रूर मिले। जीवन यापन तो वह मेहनत करके कर लेती है लेकिन उसके लिए सुरक्षा ज़रूरी है।जो उन्हें नहीं मिल पाती। खैर अपने परिवार और बच्चों को छोड़कर उच्च वर्गीय महिला का आना आसान है लेकिन निम्न वर्गीय महिला किस तरह इसमें संतुलन बनाती है ये सराहनीय है।

विकलांगों का साहस


विकलांगता को लेकर हमेशा एक धारणा बनी रही है।आज से नहीं बल्कि कई वर्षो से रही है।कईं सालो से विकलांगों के अधिकार प्राप्त कर लेने की लड़ाई चल रही है।वह सालो साल इस लड़ाई को लड़ते आए हैं।विकंलागों को समाज में अधिकार के लिए एक भारी विद्रोह करना पड़ रहा है।समाज में आज भी लोग समझते है कि विकलंाग व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता।विकलंागों को हमेषा ही दया और हमदर्दी के सहारे ही जीना चाहिए। वह दूसरों के लिए किसी काम के नहीं होते। समाज में कितने ही आंदोलन हुए।कभी स्वतंत्राता को लेकर तो कभी स्वतंत्राता से मिली तानाषाही को लेकर।कभी जातिवाद को तो कभी महिलाओं को लेकर लेकिन कोई भी आंदोलन विकलंागों के लिए नहीं हुआ।यदि हुआ भी हो तो उसे वह प्रसिद्वि नहीं मिली जो विकलंागों के आधिकार की बात कहे। समाज में कोई भी विकलंागों की बात नहीं सुनना चाहता।समाज के एक खास वर्ग की धारणा है कि विकलंाग इतना असक्षम होता है कि वह अपना काम न कर सके।लेकिन ऐसी धारणा इस बात को भूल जाती है कि यही असक्षम जीवन के प्रति बहुत सक्षम होते है।मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति उतने आत्मविष्वास के साथ काम नहीं का सकता जैसे विकलंाग करता है।वह अपने सच को स्वीकार कर उससे लड़ने की ताकत भी रखता है। विकलंाग जीवन में परिश्रम के महत्व को समझकर स्वीकार करते है।विकलंाग समाज से भी दया और हमदर्दी नहीं बल्कि एक समानता के अधिकार की मंाग कर रहे है।वह चाहते है कि कुछ नहीं बस उन्हें उनसे देष के नागरिक होने के कोई भी अधिकार छीने न जायें। इतने वर्षो से अपने मान सम्मान और अधिकार को बनाये रखने की लड़ाई में वह जीत हासिल कर रहे है।आज उनकी सुविधा के लिए कहीं से तो प्रयास सरकार के माध्यम से किया जा रही है।चाहे वो डी टी सी की नई बसें हो या फिर भूमिगत पथ-विकलंागों के अधिकारों की बात आरम्भ हुई है।यह उनकी बरसों से चली आ रहे गांधीवादी विरोध का परिणाम है।सच भी तो है किजिस देष में आम आदमी को अधिकारों की जरूरत है।

Monday, February 23, 2009

ऑस्कर विजेता


लास एंजिल्स में ८१ वे ऑस्कर समारोह का आयोजन किया गया जिसमे जीत का झंडा एक तरह से भारत ने ही गाडा है मेरा सोचना है की भारत की गरीबी नही बल्कि भारत का सच ही दिखाया गया है इस पर आपका क्या सोचना है

दिल्ली पुलिस एलर्ट

कालकाजी में पिछले चार से पाँच सालों से कई चोरिया हत्या हो रही थी लेकिन हालही में दिल्ली पुलिस उस क्षेत्र में जागी है हालही में वह पर तैनात कुछ सिपाहियों को वह घूमते हुए और कुछ पूछ ताछ करते हुए पाया गया इस पर एक आम नागरिक होने जब उनसे पुचा गया की वोह अचानक से अपने काम और फ़र्ज़ पर कैसे लौटे कई सालों तो सोते रहने के बाद उन्हें याद आया की इस इलाके के लोग परेशान है और पुलिस के प्रति उनका विश्वास उठता जा रहा है वह के हेड कांस्टेबल मुरारी लाल का इस पर कहना था की अब चोरी हत्या की खबरों के बाद बैण्ड के कारन उन की ड्यूटी लगी है दिन में चार से पाँच चक्कर लगाने की काश अपनी इस ड्यूटी का एहास पहले ही हो जाता तो शायद जिन लोगो को नुकसान और अपनी जान गवानी पड़ी वोह सब नही होता खेर देर आए दुरुस्त आए

Sunday, February 15, 2009

आधिकारियों की मनमानी


आज अगर आम आदमी परेशां है तो वोह है सरकारी अफसरों की मनमानी से कोई भी आधिकारी पुलिस से लेकर मिनिस्ट्री तक सभी को रिश्वत से ही मतलब है अगर रिश्वत नही तो अपने काम पर सही वक्त पर न आना किसी को अगर सरकारी दफ्तर में काम आ जाता है तो वोह सोचता है की कैसे काम पुरा हो अपना काम करवाने के लिए आम आदमी को कैन दिनों तक पापड़ बेलने पड़ते है हाल है पुलिस आफिसरों का किसी भी केस के आने पर वोह सबसे पहले यह सोचते है की कैसे पैसा कमाया जाए और अगर पैसा कामने में पुलिस अफसर सफल न हो सके तो फिर उन्हें लगातार तंग किया जाता है हा वोह भी तो अपराध करते है लेकिन जो वोह करे वोह कानून और आम आदमी वोह अपराध क्या महात्मा गाँधी ने इसी देश को आजाद कार्य था ? ऐसे ही लोकतंत्र की कल्पना की थी

राजनीति का सच

राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जिसे समझना आम आदमी के लिए मुश्किल ही नही नामुमकिन है विधान सभा के चुनाव नै दिल्ली से जितने के बाद एक प्रसिद नेता अपने ही वाडे से मुखर गयी वहा पर उन्ही को जितने के लिए कई कार्यकर्ताओं ने काम कियालेकिन उस नेता ने जीतने के बाद उन कार्य कर्ताओं को पहचानने से इनकार कर दिया उस कार्यकर्ता ने उसे जीतने के लिए उसके मद्दद के लिए दिन रात एक किया अपना मतलब पुरा होने और जीत जाने के बाद उसने दिखा दिया की वोह एक राजनेता ही है मतल पुरा होने पर वोह इस बात को साबित करते है यह लोअग किसी के नही है चुनाव जीतने के बाद अगर अपने ही कार्यकर्ता के साथ कोई ऐसा कर सकता है तो दिल्ली की जनता का वोह क्या करेगी यह सोचा जा सकता है

आज का बजट


आज बजट आ रहा है आज के बजट ने लोगो के जीवन पर विशेष प्रभाव डालना है छठा वेतन तो आ गया जिसने लोगों की तनखा को बड़ा दिया लेकिन इसके साथ साथ महंगाई को भी बढाया है आज के इस बजट ने काफी कुछ तय करना है आख़िर यह कितना नाश और विनाश लेकर आती है

Wednesday, January 28, 2009


१ जनवरी को एक नई मुहीम की शुरुआत की गयी थी जिसके हिसाब से बेवजह हार्न बजाना ग़लत होगा लगता है देश की जनता हर उस बाद कों विरोध करती है जिसे देश और समाज के लिए ही चलाया जाता है१ जनवरी के बाद से तो मुझे कुछ ज्यादा ही हार्न की आवाज़ सुनने कों मिली है आखी समझ नही आता की लोगो कों बेवजह हार्न बजाने में क्या मज़ा आता है

सिगरेट पर बैण्ड लग जाने पर भी सिगरेट पीना कम नही हुआ


सरकार ने बीच सड़क पर सिगरेट पीने वालो पर बैण्ड लगा दिया था लेकिन आज इतना समय हो गया लेकिन लोगो ने सिगरेट पीना बन्द नही कियाइतना ही नही सिगरेट पीने वाले बीच सड़क पर police के सामने भी सिगरेट का सेवन करते है लेकिन उन्हें रोकने वाला कोई नही होता कोई भी उनकेरोकता नही है ऐसा कानून का क्या फायदा जिसे न तो जनता इस्तमाल कर रही है और न ही पुलिस उन्हें रोकना छाती है कैसे यह बन्द हटेगा

गाँधी वादी विचारधारा


गाँधी नाम ऐसा है जिसे हम भूल नही सकते जिनके कोशिशों के कारन हमारा देश आजाद हुआ है आज कितने लोग है जो उन्ही की विचारधारा से सहमत है उनकी वही विचारधारा जिनके कारन देश को आज़ादी मिली क्या महात्मा गाँधी ने सोचा था की आज़ादी के बारसो बाद देश की यह हालत होगी जिस सपने को देख कर देश को आज़ादी दिलाई आज उस्सी देश की स्तिथि को देख कर रोना आता है राजनितिक नेता हो या फिर समाज सुधर के नाम पर अपनी जेब भरने वाले या फिर नौकरी देने की बात करते हुए देश में विदेशी पूंजी व्यवस्था को फैलाने वाले सभी का हाल एक सा ही है हमने हालही में २६ जनवरी बड़ी ही धूमधाम से मनाया लेकिन क्या वास्तव में हम यही स्वतंत्रता चाहते है क्या आज की गरीबी किसानों की यह हालत सामाजिक अव्यवस्था क्या ऐसी आज़ादी ही हमे चाहिए थी इसी की कल्पना गाँधी जी ने की थी आज कितने लोगो को गाँधी जी के विचार याद है कितने लोग इस पर अमल कर रहे है गाँधीजी को अगर हम सही रूप से याद करना चाहते है तो उनकी विचारधारा को देश और समाज पर अमल करना ज़रूरी है समाज से भेदको मिटाना और गरीबो के स्तर को ऊपर उठाने के लिए उनकी स्तिथि में सुधार करना ज़रूरी है

Thursday, January 22, 2009

आज भी वही माना गया है


टी वी को एक बेवकूफ डिब्बा कहा जाता था लेकिन कुछ ऐसे शो हालही में टी वी में आने लगे है जिनमे समाज की वास्तविकता दिखाने का प्रयास किया जाता है ऐसा एक शो है बालिका वधु इसमे समाज के ऐसे वर्ग के बारे में बताया गया है जो आज भी लड़कियों से जुड़ी सभी कुरीतियों पर आज भी उतना ही विश्वास रखते है इस धारावाहिक में लड़की का चोटी उमर में विवाह उसे शिक्षा न देना उसके विधवा हो जाने पर उसे अशुभ मानना इन सब दिखाया गया है उसे एक भोझ मानकर उसके साथ हमेशा दुर्वयवहार करना उसे हमेश एक बात ज़रूर कही जाती है की उसका घर यह नही है जहाँ उसने जनम लिया वोह नही है जहाँ उसकी शादी हुई वोह भी नही है इस दुविधा में हमेशा वोह रहती है इसी के स्थ कोलौर्स पर एक नया प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है जिसका नाम है इस देश न आना मेरी लाडो इसमे लड़की को जनम होने में ही मार कर फेक दिया जाता है उसे एक भोझ समझा जाता है ऐसे में एक लड़की पर ही निरंतर आत्याचार होते है एक चीज़ सबसे बड़ी देखने को मिलती है की इन दोनों में राजस्थान को लाकर रखा गया है इसका जवाब ज़रूर जानना चाहूंगीक्या राजस्थान को दिखाने का यह कारन तो नही है की वही पर यह प्रथाएं ज्यादा हैlआदिकी को मात्र एक भोझ समझते है तो मई इस बात की पुष्ठी ज़रूर करना चाहूंगी की सबसे ज्यादा भू़ण हत्या बड़े शेहरो जैसे पंजाब दिल्ली भी होती है वैसे यह तो हकीकत ही है की राजस्थान में भी भू़ण हत्या की संख्या कुछ कम नही है जब वह पर कोई लड़की जनम लेती है तो कहा जाता है की बारात रखनी है या लौटानी है और अगर लौटानी है तो मतलब है की उसे लड़की को दूध से भरे मटके में डूबा कर मार दिया है पता नहीं की एक नवजात शिशु को कोई कैसे डूबा कर मार सकता हैइसी को लेकर सिनेमा में भी विषय बनाया गया है मातृ भूमि इसमे एक गाव में लड़कियों की कमी हो जाने से एक लड़की का विवाह पाँच भाइयो से करवाया जाता है लेकिन वह भी उसका शोषण होता है इसे लेकर कई फिल्में बने गयी जैसे वाटर में लड़की के विधवा और पुनर्विवाह की पुरी समस्या को लाकर खड़ा किया गया लज्जा में लड़की के अलग अलग रूपों को लाकर रखा गया हैख्रैर यह तो सच है की अभी भी कुछ परिवार में लड़कियों के महत्व को समझा नही गया तो वास्तव में लड़कियों की समाज में कमी हो जायेगी

Wednesday, January 21, 2009

चैनल में प्रोग्राम दिखाने की एक होड़


न्यूज़ चैनल में प्रोग्राम दिखाने की होड़ सी चल पड़ी है प्रोग्रममेस को बहुत ही अलग ढंग से पेश किया जा रहा है अपने को सर्वश्रेष्ठदिखाने के लिए बड़े ही अल्स्ग दंग से स्वयम को प्रस्तुत करते है हालही में मैंने एक न्यूज़ चैनल में प्रोग्राम देखा उसका टाइटल था हिमेश रेशमिया को गुस्सा क्यूँ आता है ?क्या वाकई में ऐसे प्रोग्रममेस की न्यूज़ चैनल को ज़रूरत है इसके बाद संभावना सेठ का दिल किस पर आया ?आख़िर यह सब कुछ क्या है ख़ुद को और अपने चैनल को अलग दिखने क्या दिखा रहे है ऐसे ही किसी भी क्राइम से जुड़ी खबरों को इस तरह से पेश करते है की सामने वाला उसे देख कर डर जाता है ऐसा लगता है जैसे किसी को डराया जाता है सामने वाला देखने वाला इसे डर जाता है की पता नही क्या आने वाला है यह कौन सा तरीका है किसी भी ख़बर को पेश करने का फिर भी उनके चैनल की तरप आसमान को छूती है इसके आलावा न्यूज़ काह्न्नेल में कॉमेडी चैनल को दिखाना उसे एन्तेर्तैन्मेंट चैनल का दर्जा ज़रूर दे देता है एकं अपने न्यूज़ चैनल के वजूद को खोता ही जा रहा है

चैनल में प्रोग्राम दिखाने की एक होड़

Thursday, January 15, 2009

भाषा की राजनीती


मुंबई एक जाना मन शहर है । सपनो की नगरी कहा जाने वाला शहर है । और मुंबई से भी पहले है हमारा देश जहा पर लाखो संस्कृति और सभ्यता का गहरा मेल देखने को मिलता है । इस बहु संस्कृति और सभ्यता के देश में अगर कोई राज्य यह कहाकी यहाँ पर किसी विशेष भाषा के व्यक्ति को आने का ही हक है तो तो यह क्या है हाल ही में मुंबई में मराठी भाषा vs हिन्दी भाषा का झगडा छेड़ दिया है पहले तो सिर्फ़ यही था की केवल मराठी भाषी को ही बड़ी अधिकारी की नौकरी करने का हक है अब एक और मुसीबत आ गयी है की मुंबई में केवल मराठी लोगो को ही घर लेने का अधिकार है इस तरह की सोच क्या सही है पहली प्रेफेरंस मराठियों को तो समझा जाना सकता है लेकिन केवल मराठियों के लिए इस तरह की भावना देश की ही अखंडता और एकता को चोट पहुचता है इस देश में सभी को यहाँ काम करने का घर लेने का हक है यही तो लोकतंत्र है इसकी अवमानना करना क्या सही है

दिल्ली की बात नयारी


दिल्ली है सबसे नयारा शहर । यह भारत की राजधानी तो है ही साथ ही केन्द्र में यही आती है । इसके आलावा भी दिल्ली कुछ है और वही आज बताना है। यह एक ऐसा शहर है जो यहाँ पर आने वाले हर एक को अपना लेता है। दिल्ली एक ऐसा शहर है जहा पर कई ऐतिहासिक इमारते मौजूद है एक और तो लाल पुराना किला हुमायु डीके मख्बरा कुटुंब मीनार साथ साथ इंडिया गेट कमल मन्दिर जंतर मंतर जैसी इमारते भी मौजूद है यह तो हुई घुमने की जगह लेकिन इसके आलावा यहाँ पर कई प्रसिद मन्दिर भी है । चांदनी चोक की छोटी गलियों के साथ जी के की पौष कोठियां भी है । यहाँ कोई भी एक संस्कृति और सभ्यता के लोगो नहीं रहते है यह एक ऐसा शहर है जहा जो भी आता है यह उसे अपना बनाती जाती है । कई सभ्यता वाले लोग यहाँ पर एक होकर रह सकते है कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं है जो दिल्ली में न मानता हो यह ईद दिवाली गुरु पूर्व क्रिसमस सभी को बहुत ही धूम धाम से मन ता है । दिल्ली में आने वाले इसे अपना न सके लेकिन यह सभी को अपना बना लेते की ताकत है हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी एक साथ मिलकर कर खुशी से रहते हुए देखता है यही दिल्ली की खूबी है यहाँ पर मेट्रो के विकास के साथ झुगी झोपडी भी देखने को मिल जाती है खेर फिर भी कमियों के बावजूद भी दिल्ली तो दिल्ली ही है

Monday, January 12, 2009


म्यूजिक की दुनिया में एक नाम आज हाल ही के दिनों में चर्चा पर है वोह है ए आर रहमान ए र रहमान को फ़िल्म slumdog मिल्लिनियम के लिए के संगीत के लिए अवार्ड दिया गया है इन्होहे मणिरत्नम की फ़िल्म रोजा से अपने संगीत की शुरुआत की थी पहली बार ऐसा हुआ है की किसी भारतीय को गोल्डन ग्लोब पुरस्कार दिया गया है यह फ़िल्म जनवरी में भारत मैं slumdog करोड़पति के नाम से रिलीज़ होगी इस फ़िल्म के अवार्ड आज ए र रहमान की प्रसिदी में इजाफा ही हुआ है तथा इस अवार्ड से भारत का गौरव भी बड़ा है ए आर रहमान में हमे अनमोल संगीत दिया है

डी डी ए के घोटाले से आम आदमी की चाह धराशाही

आज एक ही ख़बर है जिसने आम आदमी की नींदे उदा रखी ही वोह है डी डी ए घोटाला इस घोटाले के के कारन जनता का सरकार सरकारी अधिकारीयों के उपर से विश्वास उठ गया है डी डी ए में घर लेने की तमना हर उस व्यक्ति की रही जिसके पास घर नही है लोगो ने इसी तमना में कई फॉर्म भरे नाम आने पर खुशी भी हुई लेकिन इस घोटाले ने उनकी तमना पर एक पूर्णविराम लगा दिया घोटाला तो सामने आ गया लेकिन इस पर उन लोगो की मुश्किलें बड़ गयी है जिनके नाम आए उनका कहना भी ग़लत नही है की यदि draw को रद्द कर दिया जाए तो उनके साथ भी कहीं न कहीं ना इंसाफी की जायेगी क्यूंकि इस घोटाले में उनकी क्या गलती है जब इस घोटले के आरोपी दीपक ने मीडिया को कही बात में कहा की उसने उदितराज इंडियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष को इस घोटाले के बारे में draw से दो माह पूर्व ही बता दिया था और सुरेश मीणा को पुलिस के हवाले भी किया गया इन सब के बाद भी पुलिस कुछ ख़ास कतम नही उठा पाई पुलिस की लह्परवाही के कारन आज इतने लोग दुविहा में फसे हुए है इन सब में उनका क्या कसूर उन्हें केवल पुलिस और अधिकारीयों की लह्परवाही की सज़ा ही भुगतनी पड़ेगी iस द्रव में कई नाम फर्जी थे यदि इस घोटाले को पहले ही पकड़ा जाता तो शायद इनमे उनके नाम आते जिनके वास्तव में ही आने चाहिये थे

Sunday, January 11, 2009

२००८ में दो को मिली uplabdhi


वर्ष २००८ की समाप्ति हो गयी और अपने साथ दो ऐक्ट्रेस की किस्मत भी लेकर आया है जिसके एक ओर है रब ne बना दी जोड़ी की अनुष्का शर्मा तो दूसरी ओर गजनी की असिन इन दोनों ने फ़िल्म इंडस्ट्री के मोस्ट पोपुलर ऐक्टर के साथ काम किया एक तरफ़ अनुष्का ने शारुख खान के साथ जोड़ी बने तो दूसरी ओर मिस्टर perfectionist आमिर खान के साथ जोड़ी बने दोनों ही साल के आख़िर की ब्लाक बस्टर हिट रही आगे इन दोनों की किस्मत बताएगी की कौन फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना मुकाम बनने में सफल होई है पिछले साल २००७ की दीपिका पादुकोण ने अपने मुकाम को बनाया ओर पहली ही फ़िल्म में शारुख के सामने आकर अन्य ऐक्ट्रेस को टक्कर दी २००९ की आरम्भ में ही अक्षय के साथ चांदनीचौक टू चाइना दी खेर अब इस बात का फैसला अनुष्का और असिन पर है की वोह किस प्रकार अपना मुकाम बना पाएँगी













नए चेहरे पुरानो को भुला देते है


देश में आज फिल्मो का क्रेज बढता जा रहा है यह एक ऐसी इंडस्ट्री है जहाँ पर कोम्पेतिशन दिन दिन मुश्किल होता जा रहा है २००८ में ऐसे कई चेहरे रहे जिन्होंने बहुत ही जल्दी प्रसिदी हासिल की इनमें मुख्य रूप सेकैटरीना कैफ करीना कपूर दीपिका पादुकोण साल के अंत में प्रियका चोपडा आधिक रही इनकी उपलब्धि बड़ी है जहाँ प्रियका चोपडा निरंतर फ्लॉप होने पर भी पिछले साल फैशन द्रोण और दोस्ताना जैसी फिल्मो से आगे रही वही दीपिका को ॐ शान्ति ॐ के कारन और निरंतर कोन्त्रोवेर्स्य में रहने से कई अच्छी फिल्मो का ऑफर मिला यह कुछ ऐसी ऐक्ट्रेस रही जिनकी चारो उँगलियाँ घी में और सर कडाई में रहा इनके आलावा भी कई ऐक्ट्रेस आई और वैसे ही चली भी गयी उन्हें कोई याद नही करता शायद इसका कारन लोगो में ऐक्ट्रेस की पब्लिसिटी के साथ उसका टॉप पर बना रहना भी है एक समय था जब काजोल करिश्मा रानी मुखर्जी प्रीटी जिनता मोस्ट फमोउस एश्वरिया राइ का मुकाबला करना आसन नही होता था लेकिन आज के समय में वोह नाम तो याद है लेकिन उस प्रसिद्दि के साथ नही वकत के साथ औडिएंस भी भूल जाती है

फिल्मो की होड़

गरीब बच्चे भी देश का भविष्य


आज देश में छोटे छोटे बच्चे बहुत ही तेजी से तरकी कर रहे है फ़िल्म में हो या जानकारी में creativity में आज बच्चों का जवाब नही है लेकिन इन सब कामों में केवल वही बच्चे आगे है जिन्हें यह सारी सुविधाएं प्राप्त है आज देश में ५० प्रतिशत बच्चे ऐसे है जिन्हें दो वकत का खाना भी ठीक से नही मिलता यह वह बच्चे है जो रोड पर भीक मांगते है मेरे सामने ही एक इस तरह का वाकिया हुआ एक बड़ी सी गाड़ी में भीक मांग रहे थे ध्यान से देखने पर पता चला की गाड़ी वाला खाने का सामान दे रहा है जिस बिस्कुट को थोड़ा सा खाकर पेट भर जाने पर वह बच्चो को दे रहे थे वह दृश्य बहुत ही दर्दनाक था क्यूँ रेड लिघत ऑफ़ होने और ग्रीन सिग्नल हो जाने पर गाड़ी चल पड़ी वो बच्चे उस गाड़ी से चिपके हुए थे शायद कुछ लोगो के लिए आम बात है लेकिन जिस ठण्ड के मौसम हम लोग ढेर सरे स्वेटर पहनते है वही वो बिना कपड़ो के रहते है ऐसा क्यूँ जहाँ हम बच्चो को भविष्य मानते है क्या वो हमारे देश का भविष्य नही क्या उन बच्चो की पड़ने और जीवन में सुधार की कोई लालसा नही राजनेता विकास का काम कर रहे है देश को आगे बड़ा रहे है क्या वह इन बच्चो के भविष्य को आगे नही बङाएंगे

समय तो बदला लेकिन स्थिति नही

समय बदला लेकिन स्थिति नही

आज समय बदल गया है प्रत्येक देश में लड़की आसमान की ऊँचाइयों को छू रही है जिस देश में महिलों को देवी मन जाता था आज वह की औरते दिन बी दिन तरकी कर रही है वही एक लड़की के साथ बलात्कार किया जाता है उसे ब्लाक्क्मैल कर कर उसका शोषण किया जाता है उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी आज की डेट में नही रही छोटे छोटे बचियों के साथ इस तरह का दुष्कर्म करते हुए एक बार भी उनकी मानवता नही जागती देश में लड़की को मात्र एक वास्तु समझकर उसके अधिकारों का हनन करते है शादी के बाद भी आज भी कई लड़कियों को जलाया जाता है या फिर अपने ही घर से निकल दिया जाता है किसी लड़की के साथ हुए बलात्कार बाद उसे ऐसी दृष्टि से देखा जाता है जैसे उसने ही कोई पाप किया पिछले साल ऐसे ही कई हादसे हुए जिसमे आज तक दोषियों को पुलिस नही पकड पाई ऐसे ही कई केस है जिसमे स्वयम पुलिस कर्मी ही जिम्मेदार थे लेकिन कहा और किस हद तक उन पर कार्यवाही हुई शायद यही कारन है की आज तक कई केस पेंडिंग पड़े है इसी कारन अपराधी भी इस तरह के कामो को करने में नही डरते थे आज भी औरतो की स्थिति को कोई भी नही बदल सकता औरतो के हक की मांग सालों से चल रही है और पता नही कई समय तक चलती रहेगी

आज भी असुरक्षित


Saturday, January 10, 2009

ट्रांसपोर्ट हड़ताल


ट्रांसपोर्ट तेल की हड़ताल ने इन दिनों लोगो जनता को खास परेशान कर रखा था ट्रांसपोर्ट की हड़ताल के कारन कोई भी सामान डेल्ही से बाहर का यहाँ नही आ पा रहा था इसके चलते कीमतों में बढोतरी हो रही है सब्जी के दाम बड़ते ही जा रहे है ऐसे में जहाँ एक ओर तो वैश्विक मंदी है तो दूसरी ओर आतंकी गतिविधियाँ इसके साथ ट्रांसपोर्ट की हड़ताल ने इसे बढावा दिया है आख़िर कहा से एक आम आदमी इस महंगाई से कैसे निपट पायेगा तेल की किलत के कारन ट्रैफिक की समस्या उत्पन हुई है इसके चलते लोगो को भिन्नं समस्या का सामना करना पड़ा पेट्रोल पम्प के आगे लम्बी लाइन लगी हुई थी जिसने काफी समय तक ट्रैफिक को रोक रखा था इसके चलते लोगो को काफी समय तक परेशानी का सामना करना पड़ा इससे क्या उन लोगो को कोई फर्क नही पड़ा क्या उन्होंने नही देखा की लोगो इस हड़ताल से कैसे परेशान हुए अपने लिए किसी चीज़ की सुविधा के लिए मांगना और उसी से हजारो लोगो को परेशान करना किस हद तक सही है

२००८ से २००९ तक

२००८ ख़तम हो गया और हमने २००९ में कदम भी रख दिया २००८ में कई मुश्किलों का हमने सामना किया पहले बिहार की बाढ़ फिर निरंतर बनी हुई समस्या आतंकवाद विश्व आर्थिक मंदी यह तो मुख्य समस्या है जो बनी रही लेकिन इसके साथ ऐसी कई समस्या है जिसने लोगो की नींदे उडा रखी है राष्ट्रीय रूप के साथ आज आतंरिक सुरक्षा पर भी प्रशन चिहन बन गया है आज देश की मेट्रोसिटी एसा आज कोई भी सुरक्षित नही है जहाँ देखो वहाँ लूटपाट की जा रही है लोगो को मारा जा रहा है चाहे वोहब्लू लाइन बस के द्वारा हो या बाइकर्स गैंग का आतंक हो इसमे जान केवल बेह्गुन्हः लोगो की जाती है महिलाओं की सुरक्षा पर भी एक प्रश्न चिह्न बना रहा इन सब घटनाओं से अभी निजात नही मिला था की २६/११ की घटना ने लोगो की नींदे उड़ा दी पूरे देश में इसके कारन एक आतंक का महल बन गया भारत पाक युद्ध की संभावना बन गयी इन स्थितियों का अभी अंत भी नही हुआ था की साल के प्रारम्भ में dda ghotale ने सरकारी vayvastha पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया यह ऐसी समस्या है जो साल bhar देश में बनी रही और आगे इनसे इतनी जल्दी निजात नही paya जा सकता

Sunday, January 4, 2009

रियलिटी शो की चमक

आज टीवी क सभी चैनल रियलिटी शो के आधार पर ही चल रहे है कोई भी ऐसा चैनल नही है जिसमे रियलिटी शो का नाम न हो इन रियलिटी शो की भाषा पर विचार करना भी आवश्यक हो गया है हालही में हिंदुस्तान रीमिक्स पर इसी को लेकर एक लेख भी आया था जिसमे रियलिटी शो की भाषा पर ही विचार किया गया समाचारपत्र और न्यूज़ चंनल में इस तरह की भाषा यदि समाज पर ग़लत प्रभाव डालेगी तो एन्तेर्तैन्मेंट चैनल पर चलने वाले इस तरह क शो का क्या कोई विपरीत प्रभाव समाज पर नही पड़ेगा यह एक प्रशन हमारे समक्ष खड़ा है क्या इस तरह की भाषा से आचार सहित का उल्ल्हंघन नही होता

कोमन वेअल्थ गमेस 2010

२०१० में आने वाले कोमन वेअल्थ गमेस की तयारी चल रही है सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में बन रहे स्टेडियम पर लगभग २०० करोड़ खर्च हो रहे है लेकिन इन गमेस के कारन कई पेडो को काटा जा रहा है इस पर कोई विचार नही किया जा रहा है आज प्रदुषण एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है वहा पेडो की कटाई कहा तक सही है क्या इस पर कियो विकल्प निकला जा रहा है की किस तरह इस नुकसान की भर पाई की जायेगी पेडो की निरंतर कटाई का असर ही पर्यावरण पर पड़ता है आज इसे ठण्ड के सन्दर्भ में देखा जा सकता है जहाँ २५ दिसम्बर तक ठण्ड का नाम नही था वही आज प्रतिशत तक पहुच गयी है केवल कोमन वेअल्थ गमेस ही नही विकास के कार्य फ्ल्योवर मेट्रो के नाम पर भी कई पेडो की कटाई की गयी आख़िर कौन इसकी भरपाई करेगा यदि इस पर आज विचार नही किया गया तो भविष्य में ज़रूर इसका असर दिखाई देगा